نوشته شده توسط : اعظم خواجه اف - خجسته

آه، باران!

آمده از راه باران،

تا بشویاند غبار از صورتم

پنجه اش با پنجه های مادرم همراه، باران.

آبشار گیسوانش پشت شیشه همچو زلفان فرشته،

از  مزار  والدان  در  قطره ها  آورده  با  خود  گوئیا  ارواح،  باران.

این شبی که قلب من چون آسمان ابری درخودگریه می کرد

می کشد من را ز عمق چاه سوی ماه، باران.

در رکاب ناله ی خود روح من را

می برد چون کاه، باران،

آه... باران!

 

 

 

Оҳ борон

Омада аз роҳ борон

То бишуёнад ғубор аз руи ман

Панчааш бо панчаҳои Модарам ҳамроҳ, борон

Обшори гесувонаш пушти шиша ҳамчу ангушти фаришта

Аз мазори волидон дар катраҳо оварда бо худ гуиё арвоҳ, борон

Ин шабе, ки қалби ман чун осмони абрй дар худ гиря мекард

Мекашид манро зи умқи чоҳ суи моҳ борон

Дар рикоби нолаи худ руҳи манро

Мебарад чун коҳ, борон

 

 

Оҳ...борон



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تاریخ انتشار : یک شنبه 13 / 12 / 1389 | نظرات ()
نوشته شده توسط : اعظم خواجه اف - خجسته

 

 
اشک باران رفته است
خنده ی ابر بهاران رفته است
در خم خلوتگه پارک و خیابان های شهر
جلوه های دوستداران رفته است
با صد ارمان رفته است
 
ای دریغ از یادها
از سکوتی در دل فریادها
ای دریغ از آن بهار رفته بر کام خزان
از فنای دانه ها در بادها
زین همه بیدادها
 
برف آمد،سرد شد
چشم دل از مه غم پُرگرد شد
هرچه احساس بهاری شد خزان در باغ دل
سبزه زار عشق گل ها زرد شد
آب جوی ها طرد شد
 
ای خوشا آید بهار
آید آن زیبا نگار باوقار
رود دل دریا شود در پرنیان موج او
زورق مهر و وفا گیرد قرار
بادبانش عشق یار
Белеет парус
 
Ашки борон рафтааст
 Хандаи абри баҳорон рафтааст
Дар хами хилватгаҳи парку хиёбонҳои шаҳр
 Чилваҳои дустдорон рафтааст
Бо сад армон рафтааст
 
Эй дареғ аз ёдҳо
Аз сукуте дар дили фарёдҳо
Эй дареғ аз он баҳори рафта бар коми хазон
 Аз фанои донаҳо дар бодҳо
 З-ин ҳама бедодҳо
 
Барф омад, сард шуд
Чашми дил аз меҳи ғам пургард шуд
Ҳарчй эҳсоси баҳорй, шуд хазон дар боғи дил
Сабзазори ишқи гулҳо зард шуд
Оби чуйҳо тард шуд
 
Эй хушо, ояд баҳор
 Ояд он зебонигори бовиқор
Руди дил дарё шавад дар парниёни мавчи у
 Заврақи меҳру вафо гирад қарор
Бодбонаш ишқи ёр


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تاریخ انتشار : سه شنبه 1 / 12 / 1389 | نظرات ()
نوشته شده توسط : اعظم خواجه اف - خجسته

آه من زندانی است

رد پایش چین در پیشانی است.

می کنم غم را پرس در خون و در رگ های خود

جسم من تندیس این قربانی است،

سایه ی حیرانی است.

 

Оҳи ман зиндонй аст

Изи пояш чин дар пешонй аст

Мекунам ғамро пресс дар хуну дар рагҳои худ

Чисми ман тандиси ин қурбонй аст

Сояи ҳайронй аст



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تاریخ انتشار : دو شنبه 30 / 11 / 1389 | نظرات ()
نوشته شده توسط : اعظم خواجه اف - خجسته

 

 
شاعر شعر زلالم،
حرف ها و واژه هایم – شرح حالم.
مصرع هایم – آبشاران، هر هجا چون موج آب،
بیت های پِلَّکانی – هم وجودم، هم زوال و هم کمالم.
نیک بنگر، شعر من چون عکس دل یا قطره است،
یعنی من دور از فضای قیل و قالم،
پاسخ صد ها سوالم!

Шоири шеъри зулолам

Ҳарфҳою вожаҳоям шарҳи ҳолам

Мисраҳоям обшорон,ҳар ҳичо чун мавчи об

Байтҳои зина зина ҳам вучудам ҳам заволу ҳам камолам

Нек бингар шеъри ман чун акси дил ё қатра аст

Яъне ман дур аз фазои қилу қолам

Посухи садҳо саволам



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تاریخ انتشار : یک شنبه 29 / 11 / 1389 | نظرات ()

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