نوشته شده توسط : اعظم خواجه اف - خجسته

 

صدای پای آب
ز جاده های گرم اضطراب
به باغ گلفشان قلب تشنه ام رسید
و از طنین او پیاله ی وجود من پُر از شراب
درخت پیکرم تولد جوانه را
نشسته درحریم هرحباب
بهاررا بیاب
 
 
Садои пойи об
Зи чодаҳои гарми изтироб
Ба боғи гулфишони қалби ташнаам расид
Ва аз танини у пиёлаи вучуди ман пур аз шароб
Дарахти пайкарам таваллуди чавонаро
Нишаста дар ҳарими ҳар ҳубоб
Баҳорро биёб


:: بازدید از این مطلب : 501
|
امتیاز مطلب : 74
|
تعداد امتیازدهندگان : 21
|
مجموع امتیاز : 21
تاریخ انتشار : یک شنبه 19 / 1 / 1390 | نظرات ()
نوشته شده توسط : اعظم خواجه اف - خجسته

 

عشق از نگاه

از رقص نا عیان دود آه

از باده ای که بی صدا ولی روان

می ریزد از سبوی چشم های آبی و سیاه

بر جام قلب ها آغاز، آغاز می شود، تا برگ و باد و آب و خاک

از یُمن او همه شوند همچون مسافران ماه

این عشق پاک زندگانی زنده باد

او هستی را جلال و جاه

هم یک سپاه

 

 

 

Ишқ аз нигоҳ

Аз рақси ноаёни дуди оҳ

Аз бодае, ки бе садо вале равон

Мерезад аз сабуи чашмҳои обиву сиёҳ

Бар чоми қалбҳо, оғоз мешавад, то баргу боду обу хок

Аз юмни у ҳама шавад ҳамчун мусофирони моҳ

Ин ишқи поки зиндагонй зинда бод

У ҳастиро чалолу чоҳ

Ҳам як сипоҳ

 



:: بازدید از این مطلب : 467
|
امتیاز مطلب : 68
|
تعداد امتیازدهندگان : 19
|
مجموع امتیاز : 19
تاریخ انتشار : جمعه 17 / 1 / 1390 | نظرات ()
نوشته شده توسط : اعظم خواجه اف - خجسته

 

 ویرانه را مانم گهی
خالی ز می، پیمانه را مانم گهی 
با این همه دلبستگی با همزبان و همدلان
در جمع اشان بیگانه را مانم گهی
بی خانه را مانم گهی
 
مارا ز ما ببریده اند
از دیده چون نور و ضیا ببریده اند.
بگرفته آب و خاک ما، از ریشه دور انداخته،
با فتنه و ریو و ریا ببریده اند،
با صد جفا ببریده اند.
 
اکنون بیا با هم شویم
یکجا شویم، چون قطره در هم ضَم شویم
در سرزمین آریان، عاری شویم از مرزها
مهمان خوانِ خانه ی رستم شویم،
سرمست جام جم شویم

 

Шиква ва даъват
 

Вайронаро монам гаҳе
Холй зи май паймонаро монам гаҳе
Бо ин ҳама дилбастагй бо ҳамзабону ҳамдилон
Дар чамъашон бегонаро монам гаҳе
Бехонаро монам гаҳе

Моро зи мо бибридаанд
Аз дида чун нуру зиё бибридаанд
Бигрифта обу хоки мо, аз реша дур андохта,
Бо фитнаву реву риё бибридаанд
Бо сад чафо бибридаанд.

Акнун, биё бо ҳам шавем,
Якчо шавем, чун қатра дар ҳам зам шавем
Дар  сарзамини  Ориён, орй шавем  аз  марзҳо
Меҳмони хони хонаи Рустам шавем,
Сармасти чоми Чам шавем


:: بازدید از این مطلب : 369
|
امتیاز مطلب : 57
|
تعداد امتیازدهندگان : 17
|
مجموع امتیاز : 17
تاریخ انتشار : شنبه 16 / 1 / 1390 | نظرات ()
نوشته شده توسط : اعظم خواجه اف - خجسته

 

پاییز ز رَِه رسید
بر جام برکه شیر مَه رسید
هرسو خزان له شده چون بال آفتاب
بر پنجه های نرم باد، خمیازه ی قوس قزح رسید
گویا که این بهار از سبزه رنگ سبزرا چون سبزی برده اند و لیک
سبزی فروش پیر با کوله بار پر ز کَه رسید
بازار کاه او – آیینه ی سقوط کاخ
این کاخ – شیشه کوی چَه رسید
عمرش به تَه رسید
 
 
Пойиз зи раҳ расид
Бар чоми бирка нури маҳ расид
Ҳар су хазони леҳ шуда чун боли офтоб
Бар панчаҳои нарми бод хамёзаи қавси қузаҳ расид
Гуё ки ин баҳор аз сабза ранги сабзро чун сабзй бурдаанду лек
Сабзйфуруши пир бо кулабори пур зи каҳ расид
Бозори коҳи у – ойинаи суқути кох
Ин кох – шиша куйи чаҳ расид
Умраш ба таҳ расид


:: بازدید از این مطلب : 383
|
امتیاز مطلب : 59
|
تعداد امتیازدهندگان : 18
|
مجموع امتیاز : 18
تاریخ انتشار : چهار شنبه 15 / 1 / 1390 | نظرات ()
نوشته شده توسط : اعظم خواجه اف - خجسته

 

امروز زلال
 
یک شاعرک چون قاضی
شعر زلال این کودک نوزادرا
پرونده کرد و بی خبر از آن که با دستان خود
چون کرم ابریشم عجب زار و نزار
فردای خودرا حبس کرد.
 
 
فردای زلال
 
غزل ترانه می شود
و هر قصیده عاشقانه می شود
به باغ شعر پارسی کنار بیت و مثنوی
زلال همچو یک جوانه می شود
و جاودانه می شود
 
 
Имрузи Зулол
 
Як шоирак чун козие
Шеъри зулол, ин кудаки навзодро
Парванда карду бехабар аз он ки бо дастони худ
Чун кирми абрешим ачаб зору низор
Фардои худро хабс кард
 
 
Фардои Зулол
 
Газал тарона мешавад
Ва хар касида ошикона мешавад
Ба боги шеъри порсй канори байту маснавй
Зулол хамчу як чавона мешавад
Ва човидона мешавад


:: بازدید از این مطلب : 499
|
امتیاز مطلب : 73
|
تعداد امتیازدهندگان : 21
|
مجموع امتیاز : 21
تاریخ انتشار : شنبه 9 / 1 / 1390 | نظرات ()