نوشته شده توسط : اعظم خواجه اف - خجسته

 

دست نیاز باد

آهسته موی تو گشاد

زلف سیاه خط کشید بر صفحه رخت

گوی که گرگ گشنه ای بر روی برف تازه پا نهاد

آن باد رهگزر از عطر موی تو گرفت

هرجا که رفت بوی مشک داد

این باد زنده باد.

 

Дасти ниёзи бод

Охиста муи ту кушод

Зулфи сиёх хат кашид бар сафхаи рухат

Гуи ки гурги гушнае бар руи барфи тоза по ниход

Он боди рахгузар аз атри муи ту гирифт

Харчо ки рафт буи мушк дод-

Ин бод зинда бод

 



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تاریخ انتشار : چهار شنبه 8 / 12 / 1390 | نظرات ()
نوشته شده توسط : اعظم خواجه اف - خجسته

Вақте ки ҳолам хуб нест
Неку нигар, ҳатто Зулолам хуб нест
Дар вожаҳо табхолҳо, ритме надорад ҳарфи ман
Бар пурсишам дар Фейсбук посух не, яъне саволам хуб нест
Астоменофин" мехурам, шояд ки дар худ гум шавам"
Ойина бишкастам - висолам хуб нест
Фикру хаёлам хуб нест

 

وقتی که حالم خوب نیست
نیکو نگر، حتی زلالم خوب نیست
در واژه ها تبخال ها،رتمی ندارد حرف من
بر پرسشم در "فیسبوک" پاسخ نی،یعنی سوالم خوب نیست
"استومینوفین" می خورم،ساید که در خود گم شوم
آیینه بشکستم – وصالم خوب نیست
فکر و خیالم خوب نیست


 



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تاریخ انتشار : پنج شنبه 1 / 10 / 1390 | نظرات ()
نوشته شده توسط : اعظم خواجه اف - خجسته

 

کتاب فروش پیر
به قید رفته ها اسیر
نگاه او ز پشت پنجره به کوچه ها
به جستجوی ازدهام گم شده چو آب در کویر
کتاب ها به زیر پرده ی غبار بی توجهی چو در قفس
ز چشم این زمانه ناپدید و زار و مظلوم و حقیر
دریغ روز های رفته در بخار اشک
به شیشه های پنجره حریر
بیا، سبق بگیر

 

Китобфуруши пир
Ба қайди рафтаҳо асир
Нигоҳи у зи пушти панчара ба кучаҳо
Ба чустучуи издиҳоми гумшуда чу об дар кавир
Китобҳо ба зери пардаи ғубори бетаваччуҳй чу дар қафас
Зи чашми ин замона нопадиду зору мазлуму ҳақир
Дареғи рузҳои рафта дар бухори ашк
Ба шишаҳои панчара ҳарир
Биё, сабақ бигир


 



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تاریخ انتشار : پنج شنبه 1 / 10 / 1390 | نظرات ()
نوشته شده توسط : اعظم خواجه اف - خجسته

خنده ای تقدیم کرد

لب به لب بفشرد و یک تعظیم کرد

همچو نور ماه شبرو سایه روشن آفرید

گیسوان را مشک داد و "جیم" کرد

عشق را تکریم کرد

 

Хандае такдим кард

Лаб ба лаб бифшурду як таъзим кард

Хамчу нури мохи шабрав соярушан офарид

Гесувонро мушк доду "чим"кард

Ишкро такрим кард

 



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تاریخ انتشار : چهار شنبه 25 / 7 / 1390 | نظرات ()
نوشته شده توسط : اعظم خواجه اف - خجسته

 

الو، سلام
بیا مرا رهان ز دام
ز دام سرنوشتِ در سرشت او
غمی نهفته همچو خون روز در افق شام
بیا، که کوچه های خاکی مسیر سرنوشت کور من
ز روح شادی خالی و پر از صلای انتقام
الو، کجای تو که ردِّ پای ما
ز پِله رفته روی بام
و ... بی دوام

 

Ало, салом

 

Ало, салом
Биё, маро рахон зи дом
Зи доми сарнавишти дар сиришти у
Гаме нухуфта хамчу хуни руз дар уфуки шом
Биё, ки кучахои хокии масири сарнавишти кури ман
Зи рухи шодй холиву пур аз салои интиком
Ало, кучои ту ки радди пои мо
Зи пилла рафта руи бом
Ва ...бедавом

 



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تاریخ انتشار : یک شنبه 24 / 4 / 1390 | نظرات ()
نوشته شده توسط : اعظم خواجه اف - خجسته



تو دیر آمدی، سلام

ولی عجب دلیر آمدی، سلام

ز بیشه های دام وبندِ دستِ تشنه ی حوس

رهیده، باغرور و باوقار همچو شیر آمدی، سلام

فرشته ای، بدن را بهشته ای و تشنه ی محبت و نوازشی

که از غم و فراق ورنج ویاس وغصه سیر آمدی، سلام

مرا ز من ربوده ای و بر وجود من تو چون

بهاری در کویر آمدی، سلام

چو میر آمدی، سلام.

 

Ту дер омадй, салом

Вале ачаб далер омадй, салом

Зи бешаҳои дому банди дасти ташнаи ҳавас

Раҳида, боғуруру бо виқор ҳамчу шер омадй, салом

Фариштайи, бадонро биҳиштайи ва ташнаи муҳаббату навозишй

Ки аз ғаму фироқу ранчу яъсу ғусса сер омадй, салом

Маро зи ман рабудаи ва бар вучуди ман ту чун

Баҳор дар кавир омадй, салом

Чу мир омадй, салом



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تاریخ انتشار : جمعه 1 / 4 / 1390 | نظرات ()
نوشته شده توسط : اعظم خواجه اف - خجسته

 

دوباره آمدی، سلام

به مثل یک ستاره آمدی، سلام
 
اگرچه دیرِ دیر، ولی چه پاک و خوب و باصفا
 
دلِ به پنجه های غم اسیر را چو چاره آمدی، سلام
 
کلام عاشقانه را، نگاه شاعرانه را، صدای چون ترانه را
 
تجّسم  و طراوتی ز باغ استخاره آمدی، سلام
 
ز روزهای نارسیده ی گذشته از سرم
 
چو پرتوِ اشاره آمدی، سلام
 
دوباره آمدی؟ سلام!

 

 

Дубора омадй, салом
Ба мисли як ситора омадй, салом
Агарчй дери дер, вале чй хубу поку босафо
Дили ба панчаҳои ғам асирро чу чора омадй, салом.
Каломи ошиқонаро, нигоҳи шоиронаро, садои чун таронаро
Тачассуму таровате зи боғи истихора омадй, салом
Зи рузҳои норасидаи гузашта аз сарам
Чу партави ишора омадй, салом
Дубора омадй? Салом!

 



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تاریخ انتشار : چهار شنبه 2 / 3 / 1390 | نظرات ()
نوشته شده توسط : اعظم خواجه اف - خجسته

 

 
 
نگاه شاعرانه ات
تبسم لطیف شاعرانه ات
مرا به یمن حُکمِ لحظه جاودانه می کند
و ناپدید می شوم ز خود به زیر آبشار شانه ات
بهاردرتو حک شده،به یک اشاره می کنی
مرا اسیر لفظ چون ترانه ات-
غلام جاودانه ات
Нигохи ошиконаат
Табассуми латифи шоиронаат
Маро ба юмни хукми лахза човидона мекунад
Ва нопадид мешавам зи худ ба зери обшори шонаат
Бахор дар ту ҳак шуда, ба як ишора мекунй
Маро асири лафзи чун таронаат-
Гуломи човидонаат
 
 


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تاریخ انتشار : پنج شنبه 1 / 2 / 1390 | نظرات ()
نوشته شده توسط : اعظم خواجه اف - خجسته

 

 
دوباره آمدم،سلام
به قلب پاره پاره آمدم،سلام
من آمدم که خستهاز فراق و دوری ها شدم
و درک کرده ام وصال را توی،تو چاره آمدم،سلام
دگر میانما و تو هر آن چه فاصله مباد
شکسته برج و بارهآمدم،سلام
شراره،آمدم،سلام
 
Дубора омадам, салом
Ба калби пора-пора омадам,салом
Ман омадам, ки хаста аз фироку дурихо шудам
Ва дарк кардаам висолро туйи, ту чора, омадам, салом
Дигар миёни мову ту, хар ончй фосила, мабод
Шикаста бурчу бора омадам, салом
Шарора, омадам, салом


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تاریخ انتشار : پنج شنبه 1 / 2 / 1390 | نظرات ()
نوشته شده توسط : اعظم خواجه اف - خجسته

 

بوی بهار آید همی
از باغ ها صوت هزار آید همی،
در یاله ها* از لاله ها بشکفتهگلخن های عشق
در خلوت دشت و دمن انگیزه ی بوس و کنار آید همی.
اکنون تبسم بیابا گل کرده در باغ لبان
این تحفه را جان ها نثار آید همی
در سر خمار آیدهمی
 
 
Буи бахор ояд хаме
Аз богхо савти хазор ояд хаме
Дар ёлахо аз лолахо бишкуфта гулханхои ишк
Дар хилвати дашту даман ангезаи бусу канор ояд хаме
Акнун табассум беибо гул карда дар боги лабон
Ин тухфаро чонхо нисор ояд хаме
Дар сар хумор ояд хаме
 


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تاریخ انتشار : پنج شنبه 1 / 2 / 1390 | نظرات ()
نوشته شده توسط : اعظم خواجه اف - خجسته

 

چو شب فرا رسید

قرابت دو لب فرا رسید

ستاره ها و کهکشان نظاره گر شدند

که در زمین بیکران شهامتی عجب فرا رسید

فراق و دوری از میانه پر کشید و رفت

و بزم تاب و تب فرا رسید

طرب فرا رسید

 

Тараб

Чу шаб фаро расид
Каробати ду лаб фаро расид
Ситорахову Кахкашон назорагар шуданд
Ки дар замини бекарон шахомате ачаб фаро расид
Фироку дурй аз замона пар кашиду рафт
Ва базми тобу таб фаро расид
Тараб фаро расид



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تاریخ انتشار : پنج شنبه 1 / 2 / 1390 | نظرات ()
نوشته شده توسط : اعظم خواجه اف - خجسته

 

صدای پای آب
ز جاده های گرم اضطراب
به باغ گلفشان قلب تشنه ام رسید
و از طنین او پیاله ی وجود من پُر از شراب
درخت پیکرم تولد جوانه را
نشسته درحریم هرحباب
بهاررا بیاب
 
 
Садои пойи об
Зи чодаҳои гарми изтироб
Ба боғи гулфишони қалби ташнаам расид
Ва аз танини у пиёлаи вучуди ман пур аз шароб
Дарахти пайкарам таваллуди чавонаро
Нишаста дар ҳарими ҳар ҳубоб
Баҳорро биёб


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تاریخ انتشار : یک شنبه 19 / 1 / 1390 | نظرات ()
نوشته شده توسط : اعظم خواجه اف - خجسته

 

عشق از نگاه

از رقص نا عیان دود آه

از باده ای که بی صدا ولی روان

می ریزد از سبوی چشم های آبی و سیاه

بر جام قلب ها آغاز، آغاز می شود، تا برگ و باد و آب و خاک

از یُمن او همه شوند همچون مسافران ماه

این عشق پاک زندگانی زنده باد

او هستی را جلال و جاه

هم یک سپاه

 

 

 

Ишқ аз нигоҳ

Аз рақси ноаёни дуди оҳ

Аз бодае, ки бе садо вале равон

Мерезад аз сабуи чашмҳои обиву сиёҳ

Бар чоми қалбҳо, оғоз мешавад, то баргу боду обу хок

Аз юмни у ҳама шавад ҳамчун мусофирони моҳ

Ин ишқи поки зиндагонй зинда бод

У ҳастиро чалолу чоҳ

Ҳам як сипоҳ

 



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تاریخ انتشار : جمعه 17 / 1 / 1390 | نظرات ()
نوشته شده توسط : اعظم خواجه اف - خجسته

 

 ویرانه را مانم گهی
خالی ز می، پیمانه را مانم گهی 
با این همه دلبستگی با همزبان و همدلان
در جمع اشان بیگانه را مانم گهی
بی خانه را مانم گهی
 
مارا ز ما ببریده اند
از دیده چون نور و ضیا ببریده اند.
بگرفته آب و خاک ما، از ریشه دور انداخته،
با فتنه و ریو و ریا ببریده اند،
با صد جفا ببریده اند.
 
اکنون بیا با هم شویم
یکجا شویم، چون قطره در هم ضَم شویم
در سرزمین آریان، عاری شویم از مرزها
مهمان خوانِ خانه ی رستم شویم،
سرمست جام جم شویم

 

Шиква ва даъват
 

Вайронаро монам гаҳе
Холй зи май паймонаро монам гаҳе
Бо ин ҳама дилбастагй бо ҳамзабону ҳамдилон
Дар чамъашон бегонаро монам гаҳе
Бехонаро монам гаҳе

Моро зи мо бибридаанд
Аз дида чун нуру зиё бибридаанд
Бигрифта обу хоки мо, аз реша дур андохта,
Бо фитнаву реву риё бибридаанд
Бо сад чафо бибридаанд.

Акнун, биё бо ҳам шавем,
Якчо шавем, чун қатра дар ҳам зам шавем
Дар  сарзамини  Ориён, орй шавем  аз  марзҳо
Меҳмони хони хонаи Рустам шавем,
Сармасти чоми Чам шавем


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تاریخ انتشار : شنبه 16 / 1 / 1390 | نظرات ()
نوشته شده توسط : اعظم خواجه اف - خجسته

 

پاییز ز رَِه رسید
بر جام برکه شیر مَه رسید
هرسو خزان له شده چون بال آفتاب
بر پنجه های نرم باد، خمیازه ی قوس قزح رسید
گویا که این بهار از سبزه رنگ سبزرا چون سبزی برده اند و لیک
سبزی فروش پیر با کوله بار پر ز کَه رسید
بازار کاه او – آیینه ی سقوط کاخ
این کاخ – شیشه کوی چَه رسید
عمرش به تَه رسید
 
 
Пойиз зи раҳ расид
Бар чоми бирка нури маҳ расид
Ҳар су хазони леҳ шуда чун боли офтоб
Бар панчаҳои нарми бод хамёзаи қавси қузаҳ расид
Гуё ки ин баҳор аз сабза ранги сабзро чун сабзй бурдаанду лек
Сабзйфуруши пир бо кулабори пур зи каҳ расид
Бозори коҳи у – ойинаи суқути кох
Ин кох – шиша куйи чаҳ расид
Умраш ба таҳ расид


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تاریخ انتشار : چهار شنبه 15 / 1 / 1390 | نظرات ()
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امروز زلال
 
یک شاعرک چون قاضی
شعر زلال این کودک نوزادرا
پرونده کرد و بی خبر از آن که با دستان خود
چون کرم ابریشم عجب زار و نزار
فردای خودرا حبس کرد.
 
 
فردای زلال
 
غزل ترانه می شود
و هر قصیده عاشقانه می شود
به باغ شعر پارسی کنار بیت و مثنوی
زلال همچو یک جوانه می شود
و جاودانه می شود
 
 
Имрузи Зулол
 
Як шоирак чун козие
Шеъри зулол, ин кудаки навзодро
Парванда карду бехабар аз он ки бо дастони худ
Чун кирми абрешим ачаб зору низор
Фардои худро хабс кард
 
 
Фардои Зулол
 
Газал тарона мешавад
Ва хар касида ошикона мешавад
Ба боги шеъри порсй канори байту маснавй
Зулол хамчу як чавона мешавад
Ва човидона мешавад


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تاریخ انتشار : شنبه 9 / 1 / 1390 | نظرات ()
نوشته شده توسط : اعظم خواجه اف - خجسته

الا یا ایها الساقی

بگیر من را وُ در رود شراب انداز

و در مستی ز خود بیگانه ام کن ،تا که بعد از این

رسم بر ساقی اصلی وُ می خواهم

و حل سازم مشکل ها

 

الا یا ایها الساقی

بیا لبریز کن این جام جمشیدی

دمی با یاد  دارا  وُ  فلات  آریان  گرییم

که با آن قدرت و شان و جلال خود

فرو رفتند در گل ها

 

الا یا ایها الساقی

در میخانه بکشا، پیر ما آمد

بیا،مغبچه شد خسته ز آمال خیابانی

ورا از نو به کوی می کشان آریم

که یابد راه منزل ها

 

الا یا ایها الساقی

مگو پیمانه سر آمد،که تاکستان

هنوز انگورها دارد،کُلالی کوزه می سازد

و جام جم به حکم چرخه ی تاریخ

به گردش هست چون دل ها

 


 

Ало ё айю ҳа соқй

Бигир манрову дар руди шароб андоз

Ва дар мастй зи худ бегонаам кун, то ки баъд аз ин

Расам бар соқии аслию май хоҳам

Ва ҳал созам мушкилҳо

 

Ало ё айю ҳа соқй

Биё, лабрез кун ин чоми Чамшедй

Даме бо ёди Дорову фалоти Ориён гирйем

Ки бо он қудрату шаъну чалоли худ

Фуру рафтанд дар гилҳо

 

Ало ё айю ҳа соқй

Дари майхона бикшо,пири мо омад

Биё, муғбача шуд хаста зи омоли хиёбонй

Варо аз нав ба куи майкашон орем

Ки ёбад роҳи манзилҳо

 

Ало ё айю ҳа соқй

Магу паймона сар омад,ки токистон

Ҳануз ангурҳо дорад,кулолй куза месозад

Ва Чоми Чам ба ҳукми чархаи таърих

Ба гардиш ҳаст чун дилҳо



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تاریخ انتشار : دو شنبه 21 / 12 / 1389 | نظرات ()
نوشته شده توسط : اعظم خواجه اف - خجسته

 

 "باید فراموشت کنم"

 

فریادرا چون حلقه در گوشت کنم

یاد تو را بیرون کنم از تار و پود خاطرم

در عالم متروکه ای چون مرتدی با غم هماغوشت کنم

بیرون شوم از بند تو و- از نو بسازم خویش را تا در جهان بیش و کم

با آن همه دارندگی بیچاره و یک خانه بردوشت کنم.

نه،نه، مبادا اینچنین، من بی تو هیچم، هیچ،هیچ

مستانه آ، با بوسه گلپوشت کنم

چون جام می نوشت کنم

 

Бояд фаромушат кунам

Фарёдро чун халқа дар гушат кунам

Ёди туро берун кунам аз тору пуди хотирам

Дар олами матрукае чун муртаде бо ғам хамоғушат кунам

Берун шавам аз банди Ту в-аз нав бисозам хешро, то дар чаҳони бешу кам

Бо он ҳама дорандагй,бечораву як хонабардушат кунам

На,на! Мабодо инчунин,ман бе Ту ҳечам,ҳеч, ҳеч

 Мастона о, бо буса гулпушат кунам

 Чун чоми май нушат кунам

 



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تاریخ انتشار : شنبه 17 / 12 / 1389 | نظرات ()
نوشته شده توسط : اعظم خواجه اف - خجسته

صبح دمیده است

و روز نو ز رَه رسیده است

شمیم یاد دلبری چو عطر اختران

به مویه-مویه های عالم سکوت من دویده است.

درخت بی نوای پیکرم جوانه ها زده به شاخ برگ تر

نوید سبز بودنم دگر ز باغ ها رسیده است

بنفشه زار گشته دل به موسم خزان 

و عالم نوین خریده است

کسی ندیده است.

Субҳ дамидааст

Ва рузи нав зи раҳ расидааст

Шамими ёди дилбаре чу атри ахтарон

Ба муя-муяҳои олами сукути ман давидааст

Дарахти бенавои пайкарам чавонаҳо зада, ба шоху барги тар

Навиди сабз буданам дигар зи боғҳо расидааст

Бунафшазор гашта дил ба мавсими хазон

 Ва олами навин харидааст

Касе надидааст



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تاریخ انتشار : شنبه 17 / 12 / 1389 | نظرات ()
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بهشت

اردو زده

با لاله در یاله

لب جو سبزه رقصان است

نسیم و عطر می پیچند با هم

به صحرا ابر می گیرید

و من با یاد تو

اردو زدم

بی تو

Биҳишт

Урду зада

Бо лола дар ёла

Лаби чу сабза рақсон аст

Насиму атр мепечанд бо ҳам

Ба саҳро абр мегиряд

Ва ман бо ёди ту

Урду задам

Бе ту



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آه، باران!

آمده از راه باران،

تا بشویاند غبار از صورتم

پنجه اش با پنجه های مادرم همراه، باران.

آبشار گیسوانش پشت شیشه همچو زلفان فرشته،

از  مزار  والدان  در  قطره ها  آورده  با  خود  گوئیا  ارواح،  باران.

این شبی که قلب من چون آسمان ابری درخودگریه می کرد

می کشد من را ز عمق چاه سوی ماه، باران.

در رکاب ناله ی خود روح من را

می برد چون کاه، باران،

آه... باران!

 

 

 

Оҳ борон

Омада аз роҳ борон

То бишуёнад ғубор аз руи ман

Панчааш бо панчаҳои Модарам ҳамроҳ, борон

Обшори гесувонаш пушти шиша ҳамчу ангушти фаришта

Аз мазори волидон дар катраҳо оварда бо худ гуиё арвоҳ, борон

Ин шабе, ки қалби ман чун осмони абрй дар худ гиря мекард

Мекашид манро зи умқи чоҳ суи моҳ борон

Дар рикоби нолаи худ руҳи манро

Мебарад чун коҳ, борон

 

 

Оҳ...борон



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نوشته شده توسط : اعظم خواجه اف - خجسته

 

 
اشک باران رفته است
خنده ی ابر بهاران رفته است
در خم خلوتگه پارک و خیابان های شهر
جلوه های دوستداران رفته است
با صد ارمان رفته است
 
ای دریغ از یادها
از سکوتی در دل فریادها
ای دریغ از آن بهار رفته بر کام خزان
از فنای دانه ها در بادها
زین همه بیدادها
 
برف آمد،سرد شد
چشم دل از مه غم پُرگرد شد
هرچه احساس بهاری شد خزان در باغ دل
سبزه زار عشق گل ها زرد شد
آب جوی ها طرد شد
 
ای خوشا آید بهار
آید آن زیبا نگار باوقار
رود دل دریا شود در پرنیان موج او
زورق مهر و وفا گیرد قرار
بادبانش عشق یار
Белеет парус
 
Ашки борон рафтааст
 Хандаи абри баҳорон рафтааст
Дар хами хилватгаҳи парку хиёбонҳои шаҳр
 Чилваҳои дустдорон рафтааст
Бо сад армон рафтааст
 
Эй дареғ аз ёдҳо
Аз сукуте дар дили фарёдҳо
Эй дареғ аз он баҳори рафта бар коми хазон
 Аз фанои донаҳо дар бодҳо
 З-ин ҳама бедодҳо
 
Барф омад, сард шуд
Чашми дил аз меҳи ғам пургард шуд
Ҳарчй эҳсоси баҳорй, шуд хазон дар боғи дил
Сабзазори ишқи гулҳо зард шуд
Оби чуйҳо тард шуд
 
Эй хушо, ояд баҳор
 Ояд он зебонигори бовиқор
Руди дил дарё шавад дар парниёни мавчи у
 Заврақи меҳру вафо гирад қарор
Бодбонаш ишқи ёр


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آه من زندانی است

رد پایش چین در پیشانی است.

می کنم غم را پرس در خون و در رگ های خود

جسم من تندیس این قربانی است،

سایه ی حیرانی است.

 

Оҳи ман зиндонй аст

Изи пояш чин дар пешонй аст

Мекунам ғамро пресс дар хуну дар рагҳои худ

Чисми ман тандиси ин қурбонй аст

Сояи ҳайронй аст



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تاریخ انتشار : دو شنبه 30 / 11 / 1389 | نظرات ()
نوشته شده توسط : اعظم خواجه اف - خجسته

 

 
شاعر شعر زلالم،
حرف ها و واژه هایم – شرح حالم.
مصرع هایم – آبشاران، هر هجا چون موج آب،
بیت های پِلَّکانی – هم وجودم، هم زوال و هم کمالم.
نیک بنگر، شعر من چون عکس دل یا قطره است،
یعنی من دور از فضای قیل و قالم،
پاسخ صد ها سوالم!

Шоири шеъри зулолам

Ҳарфҳою вожаҳоям шарҳи ҳолам

Мисраҳоям обшорон,ҳар ҳичо чун мавчи об

Байтҳои зина зина ҳам вучудам ҳам заволу ҳам камолам

Нек бингар шеъри ман чун акси дил ё қатра аст

Яъне ман дур аз фазои қилу қолам

Посухи садҳо саволам



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تاریخ انتشار : یک شنبه 29 / 11 / 1389 | نظرات ()

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