نوشته شده توسط : اعظم خواجه اف - خجسته

 

چو شب فرا رسید

قرابت دو لب فرا رسید

ستاره ها و کهکشان نظاره گر شدند

که در زمین بیکران شهامتی عجب فرا رسید

فراق و دوری از میانه پر کشید و رفت

و بزم تاب و تب فرا رسید

طرب فرا رسید

 

Тараб

Чу шаб фаро расид
Каробати ду лаб фаро расид
Ситорахову Кахкашон назорагар шуданд
Ки дар замини бекарон шахомате ачаб фаро расид
Фироку дурй аз замона пар кашиду рафт
Ва базми тобу таб фаро расид
Тараб фаро расид



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تاریخ انتشار : پنج شنبه 1 / 2 / 1390 | نظرات ()
نوشته شده توسط : اعظم خواجه اف - خجسته

 

صدای پای آب
ز جاده های گرم اضطراب
به باغ گلفشان قلب تشنه ام رسید
و از طنین او پیاله ی وجود من پُر از شراب
درخت پیکرم تولد جوانه را
نشسته درحریم هرحباب
بهاررا بیاب
 
 
Садои пойи об
Зи чодаҳои гарми изтироб
Ба боғи гулфишони қалби ташнаам расид
Ва аз танини у пиёлаи вучуди ман пур аз шароб
Дарахти пайкарам таваллуди чавонаро
Нишаста дар ҳарими ҳар ҳубоб
Баҳорро биёб


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تاریخ انتشار : یک شنبه 19 / 1 / 1390 | نظرات ()
نوشته شده توسط : اعظم خواجه اف - خجسته

 

عشق از نگاه

از رقص نا عیان دود آه

از باده ای که بی صدا ولی روان

می ریزد از سبوی چشم های آبی و سیاه

بر جام قلب ها آغاز، آغاز می شود، تا برگ و باد و آب و خاک

از یُمن او همه شوند همچون مسافران ماه

این عشق پاک زندگانی زنده باد

او هستی را جلال و جاه

هم یک سپاه

 

 

 

Ишқ аз нигоҳ

Аз рақси ноаёни дуди оҳ

Аз бодае, ки бе садо вале равон

Мерезад аз сабуи чашмҳои обиву сиёҳ

Бар чоми қалбҳо, оғоз мешавад, то баргу боду обу хок

Аз юмни у ҳама шавад ҳамчун мусофирони моҳ

Ин ишқи поки зиндагонй зинда бод

У ҳастиро чалолу чоҳ

Ҳам як сипоҳ

 



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تاریخ انتشار : جمعه 17 / 1 / 1390 | نظرات ()
نوشته شده توسط : اعظم خواجه اف - خجسته

 

 ویرانه را مانم گهی
خالی ز می، پیمانه را مانم گهی 
با این همه دلبستگی با همزبان و همدلان
در جمع اشان بیگانه را مانم گهی
بی خانه را مانم گهی
 
مارا ز ما ببریده اند
از دیده چون نور و ضیا ببریده اند.
بگرفته آب و خاک ما، از ریشه دور انداخته،
با فتنه و ریو و ریا ببریده اند،
با صد جفا ببریده اند.
 
اکنون بیا با هم شویم
یکجا شویم، چون قطره در هم ضَم شویم
در سرزمین آریان، عاری شویم از مرزها
مهمان خوانِ خانه ی رستم شویم،
سرمست جام جم شویم

 

Шиква ва даъват
 

Вайронаро монам гаҳе
Холй зи май паймонаро монам гаҳе
Бо ин ҳама дилбастагй бо ҳамзабону ҳамдилон
Дар чамъашон бегонаро монам гаҳе
Бехонаро монам гаҳе

Моро зи мо бибридаанд
Аз дида чун нуру зиё бибридаанд
Бигрифта обу хоки мо, аз реша дур андохта,
Бо фитнаву реву риё бибридаанд
Бо сад чафо бибридаанд.

Акнун, биё бо ҳам шавем,
Якчо шавем, чун қатра дар ҳам зам шавем
Дар  сарзамини  Ориён, орй шавем  аз  марзҳо
Меҳмони хони хонаи Рустам шавем,
Сармасти чоми Чам шавем


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تاریخ انتشار : شنبه 16 / 1 / 1390 | نظرات ()
نوشته شده توسط : اعظم خواجه اف - خجسته

 

پاییز ز رَِه رسید
بر جام برکه شیر مَه رسید
هرسو خزان له شده چون بال آفتاب
بر پنجه های نرم باد، خمیازه ی قوس قزح رسید
گویا که این بهار از سبزه رنگ سبزرا چون سبزی برده اند و لیک
سبزی فروش پیر با کوله بار پر ز کَه رسید
بازار کاه او – آیینه ی سقوط کاخ
این کاخ – شیشه کوی چَه رسید
عمرش به تَه رسید
 
 
Пойиз зи раҳ расид
Бар чоми бирка нури маҳ расид
Ҳар су хазони леҳ шуда чун боли офтоб
Бар панчаҳои нарми бод хамёзаи қавси қузаҳ расид
Гуё ки ин баҳор аз сабза ранги сабзро чун сабзй бурдаанду лек
Сабзйфуруши пир бо кулабори пур зи каҳ расид
Бозори коҳи у – ойинаи суқути кох
Ин кох – шиша куйи чаҳ расид
Умраш ба таҳ расид


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تاریخ انتشار : چهار شنبه 15 / 1 / 1390 | نظرات ()
نوشته شده توسط : اعظم خواجه اف - خجسته

 

امروز زلال
 
یک شاعرک چون قاضی
شعر زلال این کودک نوزادرا
پرونده کرد و بی خبر از آن که با دستان خود
چون کرم ابریشم عجب زار و نزار
فردای خودرا حبس کرد.
 
 
فردای زلال
 
غزل ترانه می شود
و هر قصیده عاشقانه می شود
به باغ شعر پارسی کنار بیت و مثنوی
زلال همچو یک جوانه می شود
و جاودانه می شود
 
 
Имрузи Зулол
 
Як шоирак чун козие
Шеъри зулол, ин кудаки навзодро
Парванда карду бехабар аз он ки бо дастони худ
Чун кирми абрешим ачаб зору низор
Фардои худро хабс кард
 
 
Фардои Зулол
 
Газал тарона мешавад
Ва хар касида ошикона мешавад
Ба боги шеъри порсй канори байту маснавй
Зулол хамчу як чавона мешавад
Ва човидона мешавад


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تاریخ انتشار : شنبه 9 / 1 / 1390 | نظرات ()
نوشته شده توسط : اعظم خواجه اف - خجسته

الا یا ایها الساقی

بگیر من را وُ در رود شراب انداز

و در مستی ز خود بیگانه ام کن ،تا که بعد از این

رسم بر ساقی اصلی وُ می خواهم

و حل سازم مشکل ها

 

الا یا ایها الساقی

بیا لبریز کن این جام جمشیدی

دمی با یاد  دارا  وُ  فلات  آریان  گرییم

که با آن قدرت و شان و جلال خود

فرو رفتند در گل ها

 

الا یا ایها الساقی

در میخانه بکشا، پیر ما آمد

بیا،مغبچه شد خسته ز آمال خیابانی

ورا از نو به کوی می کشان آریم

که یابد راه منزل ها

 

الا یا ایها الساقی

مگو پیمانه سر آمد،که تاکستان

هنوز انگورها دارد،کُلالی کوزه می سازد

و جام جم به حکم چرخه ی تاریخ

به گردش هست چون دل ها

 


 

Ало ё айю ҳа соқй

Бигир манрову дар руди шароб андоз

Ва дар мастй зи худ бегонаам кун, то ки баъд аз ин

Расам бар соқии аслию май хоҳам

Ва ҳал созам мушкилҳо

 

Ало ё айю ҳа соқй

Биё, лабрез кун ин чоми Чамшедй

Даме бо ёди Дорову фалоти Ориён гирйем

Ки бо он қудрату шаъну чалоли худ

Фуру рафтанд дар гилҳо

 

Ало ё айю ҳа соқй

Дари майхона бикшо,пири мо омад

Биё, муғбача шуд хаста зи омоли хиёбонй

Варо аз нав ба куи майкашон орем

Ки ёбад роҳи манзилҳо

 

Ало ё айю ҳа соқй

Магу паймона сар омад,ки токистон

Ҳануз ангурҳо дорад,кулолй куза месозад

Ва Чоми Чам ба ҳукми чархаи таърих

Ба гардиш ҳаст чун дилҳо



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تاریخ انتشار : دو شنبه 21 / 12 / 1389 | نظرات ()
نوشته شده توسط : اعظم خواجه اف - خجسته

 

 "باید فراموشت کنم"

 

فریادرا چون حلقه در گوشت کنم

یاد تو را بیرون کنم از تار و پود خاطرم

در عالم متروکه ای چون مرتدی با غم هماغوشت کنم

بیرون شوم از بند تو و- از نو بسازم خویش را تا در جهان بیش و کم

با آن همه دارندگی بیچاره و یک خانه بردوشت کنم.

نه،نه، مبادا اینچنین، من بی تو هیچم، هیچ،هیچ

مستانه آ، با بوسه گلپوشت کنم

چون جام می نوشت کنم

 

Бояд фаромушат кунам

Фарёдро чун халқа дар гушат кунам

Ёди туро берун кунам аз тору пуди хотирам

Дар олами матрукае чун муртаде бо ғам хамоғушат кунам

Берун шавам аз банди Ту в-аз нав бисозам хешро, то дар чаҳони бешу кам

Бо он ҳама дорандагй,бечораву як хонабардушат кунам

На,на! Мабодо инчунин,ман бе Ту ҳечам,ҳеч, ҳеч

 Мастона о, бо буса гулпушат кунам

 Чун чоми май нушат кунам

 



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تاریخ انتشار : شنبه 17 / 12 / 1389 | نظرات ()
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صبح دمیده است

و روز نو ز رَه رسیده است

شمیم یاد دلبری چو عطر اختران

به مویه-مویه های عالم سکوت من دویده است.

درخت بی نوای پیکرم جوانه ها زده به شاخ برگ تر

نوید سبز بودنم دگر ز باغ ها رسیده است

بنفشه زار گشته دل به موسم خزان 

و عالم نوین خریده است

کسی ندیده است.

Субҳ дамидааст

Ва рузи нав зи раҳ расидааст

Шамими ёди дилбаре чу атри ахтарон

Ба муя-муяҳои олами сукути ман давидааст

Дарахти бенавои пайкарам чавонаҳо зада, ба шоху барги тар

Навиди сабз буданам дигар зи боғҳо расидааст

Бунафшазор гашта дил ба мавсими хазон

 Ва олами навин харидааст

Касе надидааст



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تاریخ انتشار : شنبه 17 / 12 / 1389 | نظرات ()
نوشته شده توسط : اعظم خواجه اف - خجسته

بهشت

اردو زده

با لاله در یاله

لب جو سبزه رقصان است

نسیم و عطر می پیچند با هم

به صحرا ابر می گیرید

و من با یاد تو

اردو زدم

بی تو

Биҳишт

Урду зада

Бо лола дар ёла

Лаби чу сабза рақсон аст

Насиму атр мепечанд бо ҳам

Ба саҳро абр мегиряд

Ва ман бо ёди ту

Урду задам

Бе ту



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تاریخ انتشار : شنبه 17 / 12 / 1389 | نظرات ()