نوشته شده توسط : اعظم خواجه اف - خجسته

الا یا ایها الساقی

بگیر من را وُ در رود شراب انداز

و در مستی ز خود بیگانه ام کن ،تا که بعد از این

رسم بر ساقی اصلی وُ می خواهم

و حل سازم مشکل ها

 

الا یا ایها الساقی

بیا لبریز کن این جام جمشیدی

دمی با یاد  دارا  وُ  فلات  آریان  گرییم

که با آن قدرت و شان و جلال خود

فرو رفتند در گل ها

 

الا یا ایها الساقی

در میخانه بکشا، پیر ما آمد

بیا،مغبچه شد خسته ز آمال خیابانی

ورا از نو به کوی می کشان آریم

که یابد راه منزل ها

 

الا یا ایها الساقی

مگو پیمانه سر آمد،که تاکستان

هنوز انگورها دارد،کُلالی کوزه می سازد

و جام جم به حکم چرخه ی تاریخ

به گردش هست چون دل ها

 


 

Ало ё айю ҳа соқй

Бигир манрову дар руди шароб андоз

Ва дар мастй зи худ бегонаам кун, то ки баъд аз ин

Расам бар соқии аслию май хоҳам

Ва ҳал созам мушкилҳо

 

Ало ё айю ҳа соқй

Биё, лабрез кун ин чоми Чамшедй

Даме бо ёди Дорову фалоти Ориён гирйем

Ки бо он қудрату шаъну чалоли худ

Фуру рафтанд дар гилҳо

 

Ало ё айю ҳа соқй

Дари майхона бикшо,пири мо омад

Биё, муғбача шуд хаста зи омоли хиёбонй

Варо аз нав ба куи майкашон орем

Ки ёбад роҳи манзилҳо

 

Ало ё айю ҳа соқй

Магу паймона сар омад,ки токистон

Ҳануз ангурҳо дорад,кулолй куза месозад

Ва Чоми Чам ба ҳукми чархаи таърих

Ба гардиш ҳаст чун дилҳо



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تاریخ انتشار : دو شنبه 21 / 12 / 1389 | نظرات ()
نوشته شده توسط : اعظم خواجه اف - خجسته

 

 "باید فراموشت کنم"

 

فریادرا چون حلقه در گوشت کنم

یاد تو را بیرون کنم از تار و پود خاطرم

در عالم متروکه ای چون مرتدی با غم هماغوشت کنم

بیرون شوم از بند تو و- از نو بسازم خویش را تا در جهان بیش و کم

با آن همه دارندگی بیچاره و یک خانه بردوشت کنم.

نه،نه، مبادا اینچنین، من بی تو هیچم، هیچ،هیچ

مستانه آ، با بوسه گلپوشت کنم

چون جام می نوشت کنم

 

Бояд фаромушат кунам

Фарёдро чун халқа дар гушат кунам

Ёди туро берун кунам аз тору пуди хотирам

Дар олами матрукае чун муртаде бо ғам хамоғушат кунам

Берун шавам аз банди Ту в-аз нав бисозам хешро, то дар чаҳони бешу кам

Бо он ҳама дорандагй,бечораву як хонабардушат кунам

На,на! Мабодо инчунин,ман бе Ту ҳечам,ҳеч, ҳеч

 Мастона о, бо буса гулпушат кунам

 Чун чоми май нушат кунам

 



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تاریخ انتشار : شنبه 17 / 12 / 1389 | نظرات ()
نوشته شده توسط : اعظم خواجه اف - خجسته

صبح دمیده است

و روز نو ز رَه رسیده است

شمیم یاد دلبری چو عطر اختران

به مویه-مویه های عالم سکوت من دویده است.

درخت بی نوای پیکرم جوانه ها زده به شاخ برگ تر

نوید سبز بودنم دگر ز باغ ها رسیده است

بنفشه زار گشته دل به موسم خزان 

و عالم نوین خریده است

کسی ندیده است.

Субҳ дамидааст

Ва рузи нав зи раҳ расидааст

Шамими ёди дилбаре чу атри ахтарон

Ба муя-муяҳои олами сукути ман давидааст

Дарахти бенавои пайкарам чавонаҳо зада, ба шоху барги тар

Навиди сабз буданам дигар зи боғҳо расидааст

Бунафшазор гашта дил ба мавсими хазон

 Ва олами навин харидааст

Касе надидааст



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تاریخ انتشار : شنبه 17 / 12 / 1389 | نظرات ()
نوشته شده توسط : اعظم خواجه اف - خجسته

بهشت

اردو زده

با لاله در یاله

لب جو سبزه رقصان است

نسیم و عطر می پیچند با هم

به صحرا ابر می گیرید

و من با یاد تو

اردو زدم

بی تو

Биҳишт

Урду зада

Бо лола дар ёла

Лаби чу сабза рақсон аст

Насиму атр мепечанд бо ҳам

Ба саҳро абр мегиряд

Ва ман бо ёди ту

Урду задам

Бе ту



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تاریخ انتشار : شنبه 17 / 12 / 1389 | نظرات ()
نوشته شده توسط : اعظم خواجه اف - خجسته

آه، باران!

آمده از راه باران،

تا بشویاند غبار از صورتم

پنجه اش با پنجه های مادرم همراه، باران.

آبشار گیسوانش پشت شیشه همچو زلفان فرشته،

از  مزار  والدان  در  قطره ها  آورده  با  خود  گوئیا  ارواح،  باران.

این شبی که قلب من چون آسمان ابری درخودگریه می کرد

می کشد من را ز عمق چاه سوی ماه، باران.

در رکاب ناله ی خود روح من را

می برد چون کاه، باران،

آه... باران!

 

 

 

Оҳ борон

Омада аз роҳ борон

То бишуёнад ғубор аз руи ман

Панчааш бо панчаҳои Модарам ҳамроҳ, борон

Обшори гесувонаш пушти шиша ҳамчу ангушти фаришта

Аз мазори волидон дар катраҳо оварда бо худ гуиё арвоҳ, борон

Ин шабе, ки қалби ман чун осмони абрй дар худ гиря мекард

Мекашид манро зи умқи чоҳ суи моҳ борон

Дар рикоби нолаи худ руҳи манро

Мебарад чун коҳ, борон

 

 

Оҳ...борон



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تاریخ انتشار : یک شنبه 13 / 12 / 1389 | نظرات ()
نوشته شده توسط : اعظم خواجه اف - خجسته

 

 
اشک باران رفته است
خنده ی ابر بهاران رفته است
در خم خلوتگه پارک و خیابان های شهر
جلوه های دوستداران رفته است
با صد ارمان رفته است
 
ای دریغ از یادها
از سکوتی در دل فریادها
ای دریغ از آن بهار رفته بر کام خزان
از فنای دانه ها در بادها
زین همه بیدادها
 
برف آمد،سرد شد
چشم دل از مه غم پُرگرد شد
هرچه احساس بهاری شد خزان در باغ دل
سبزه زار عشق گل ها زرد شد
آب جوی ها طرد شد
 
ای خوشا آید بهار
آید آن زیبا نگار باوقار
رود دل دریا شود در پرنیان موج او
زورق مهر و وفا گیرد قرار
بادبانش عشق یار
Белеет парус
 
Ашки борон рафтааст
 Хандаи абри баҳорон рафтааст
Дар хами хилватгаҳи парку хиёбонҳои шаҳр
 Чилваҳои дустдорон рафтааст
Бо сад армон рафтааст
 
Эй дареғ аз ёдҳо
Аз сукуте дар дили фарёдҳо
Эй дареғ аз он баҳори рафта бар коми хазон
 Аз фанои донаҳо дар бодҳо
 З-ин ҳама бедодҳо
 
Барф омад, сард шуд
Чашми дил аз меҳи ғам пургард шуд
Ҳарчй эҳсоси баҳорй, шуд хазон дар боғи дил
Сабзазори ишқи гулҳо зард шуд
Оби чуйҳо тард шуд
 
Эй хушо, ояд баҳор
 Ояд он зебонигори бовиқор
Руди дил дарё шавад дар парниёни мавчи у
 Заврақи меҳру вафо гирад қарор
Бодбонаш ишқи ёр


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تاریخ انتشار : سه شنبه 1 / 12 / 1389 | نظرات ()